तक़रीबन 100 वर्षो के बाद इतिहास दोहराया जा रहा हैं, कांग्रेस के आला पद पर किसी ग़ैर गांधी के स्थापथ्य को आप गांधी की हार समझने की भूल ना करें।

1922 में चौरा-चौरी की हिंसक घटना के मद्देनजर बापू ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था, इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस 2 गुटों में बट गई नरम दल और गरम दल, ऐसे में बापू ने अहिंसा का मार्ग चुनते हुए कांग्रेस की रणनीति से बाहर आ गए और 2024 से हरिजनोद्धार का मार्ग चुना और फिर एक बार देश भर में निकल पड़े, इसका प्रभाव आने वाले 4-6 वर्षों में यह हुआ कि कांग्रेस का अध्यक्ष कौन हैं उसका नाम देश की जनता को पता हो या ना हो, गांधी अब एक मास लीडर (जन नेता) के रूप में उभरकर निकले, और ऐसी भीड़ उनके भारत भ्रमण में दिखी के सारी दुनियाँ खड़ी की खड़ी रह गई।

इसी तरह राहुल गांधी का लक्ष्य 2019 की हार के बाद बदल गया, उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद से वही लड़ाई शुरू की जो बापू ने की थी, राहुल का लक्ष्य अब 2024 या 2028 का चुनाव नहीं हैं, वह राजनीति त्यागकर अब बापू की तरह जनता के इंसाफ़ की लड़ाई में चल पड़े हैं।

इस बात से अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता हैं कि 2024 का चुनाव कौन जीतेगा, लेकिन हज़ारों लोगों की भीड़, बच्चों का प्रेम, युवाओं का जोश और वृद्धजनों की आंखों के आंसू बता रहें हैं देश को एक बार फिर जिस गांधी की ज़रूरत थी वो आ चुका हैं।
- अमीर हाशमी
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