राजू भइया हम हंसना अच्छे से सीखे भी नहीं थे और आप चले गए… ये आपने ठीक नहीं किया।
स्कूल के दिनों में अपने और दोस्तों के मजे के लिए शिक्षकों की नकल उतारने वाले उस बच्चे को कहां पता था कि वह एक दिन में लाखों लोगों को गुदगुदाएगा और हास्य का चेहरा बन जाएगा। वह चेहरा जिसे देखते ही लोगों के चेहरे खिल जाते थे। वह आवाज जिसमें सौंधी माटी की सी गमक थी, जिसके कान में जाते ही हंसी से पेट में बल पड़ जाते हैं। अरे भइया के संबोधन के साथ ही सतरंगी किरदारों का ऐसा मेला लगता, जिसमें हर खासोआम को मनमाफिक मनोरंजन मिल जाता था। यह बच्चा था सत्य प्रकाश श्रीवास्तव। तब उसने बचपन में ही यह बात मानो समझ ली थी कि जीवन का असल सत्य खुश रहने में है और इसी से जिंदगी रोशन है अन्यथा सब जंजाल है। उनकी किस्सागोई और मिमिक्री का देसज अंदाज लोगों को इस कदर भाया कि सत्य प्रकाश श्रीवास्तव सबके चेहरे चहेते राजू हो गए। सबको हंसी का टॉनिक पिलाने वाले राजू को इस कदर कसरत करना ही नहीं थी। दरअसल वे तो दूसरों को गुदगुदाने के लिए ही बने थे। मंच के सामने बैठा हर शख्स उनका किरदार होता था और बरास्ते गजोधर वे हर दर्शक और श्रोता के जेहन में उतर जाते थे। कुत्तों की महफिल हो या भैसियों की बतकही… ये सब वे जितनी शिद्दत से डिस्क्राइब करते थे, उतनी ही सहजता से सब्जी वाले, दूध वाले और आम नौकरीपेशा इंसान को आत्मसात कर लेते थे। उनके चुटकुले किताबी नहीं, जिंदगियों के बीच से निकले हैं। जिसमें गरीबी है जद्दोजहद है। इन सबों से राजू निकालते थे जिंदगी का हास्य रस। यही वजह थी कि वह दूसरे हास्य कलाकारों की भीड़ में अलहदा थे। सीधी सहज कनपुरिया जुबान में मुद्दों की गजब की गहराई होती थी और उतना ही करारा तंज भी होता था। कमाल यह कि जिस पर तंज किया जाता था वह भी हंसे बिना नहीं रह सकता था। राजू ने गली मोहल्लों से अपने किरदारों को तलाशा था और फिर अपनी जुबान से उन्हें तराशा। इन किरदारों जब वे बयां करते तो लगता है कि हमारे अपने हैं। उनका ऑब्जरवेशन बहुत बारीक था, वह देह से दिल में उतर जाता है। यही उनके हुनर की असल ताकत है, जिसे लोगों की बेपनाह मोहब्बत मिली। उनकी आम कदकाठी में बड़ा कलाकार समाया हुआ था, जिससे हर व्यक्ति सहज जुड़ाव महसूस करने लगता था। गाय पर बनाया वो वीडियो कौन भूल सकता है, जिसमें वे बूढ़ी गाय की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। इससे उनके कलाकार मन की गहराई और संवेदनशीलता भी जाहिर होती है।
उनके हर चाहने वाले कि यही ख्वाहिश थी कि राजू भइया अब उठिए, बहुत आराम हो गया और अपने से अंदाज में बेसाख्ता बोलिए… अरे भैया हम कहां थे इतना सन्नाटा क्यों है भाई… दर्शकों को आपका इंतजार था, मंच सजा था कि आप आएंगे और इस सन्नाटे को तोड़ देंगे…लेकिन ये हो न सका। राजू श्रीवास्तव का नाम और काम सदा लोगों को गुदगुदाता रहेगा।