जितने अच्छे कवि थे उतने ही अच्छे इंसान थे हिदायत अली ‘कमलाकर’ जी। वे हमारे शहर की गंगा-जमुनी संस्कृति की पहचान रहे हैं। उनकी कृति “किसना मोहे तारो” को लेकर उन्हें मैं बिलासपुर के रहीम खानखाना की उपाधि दूं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
भारतेंदु साहित्य समिति में मेरी मुलाकात उनसे हुई।इसके बाद अनेक वर्षों तक उनका साथ एवं स्नेह मुझे प्राप्त हुआ।मेरे लिए वे,अविस्मरणीय हैं। उर्दूभाषी परिवार में जन्म लेने के बाद भी उन्होंने चालीस से अधिक वर्षों तक हिंदी की सेवा की।
भारतेंदु साहित्य समिति के संस्थापक एवं प्रधान सचिव पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी “विप्र गुरुजी” रोज शाम को धोंधा बाबा राममंदिर में बैठा करते थे।वहां शाम को कवियों की जमघट लग जाती थी।
एक औसत कद के अत्यंत साधारण व्यक्ति कोनी से आया करते थे। दुबले-पतले अधेड़ वय के इस व्यक्ति का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि पल में लोगों को आकृष्ट कर लेता था।सिर के पीछे के बाल लंबे थे।उस जमाने में प्रायः सभी कवियों के बाल लंबे हुआ करते थे।
कवि गोष्ठी के मौके पर जब उनका नाम लेकर काव्य पाठ के लिया आमंत्रित किया गया, तब मुझे पता चला कि आप हिदायत अली कमलाकर जी हैं। उनकी पढ़ी गई रचना की भाषा सुनकर मुझे बड़ी हैरानी हुई।उनकी भाषा विशुध्द हिंदी और साहित्यिक थी।उर्दू भाषा परिवार में जन्में, पले, बढ़े व्यक्ति की हिंदी इतनी सुंदर,सरस होना, मुझे चौंकाने वाला ही था।
इसके बाद उनसे व उनकी रचनाओं से प्रायः मुलाकात होती रही।मज़े की बात तो यह है कि वे दूसरों की रचनाओं का पाठ भी बड़ी तल्लीनता से किया करते।इससे उनके निरंतर अध्ययन की बात तो पता चलती ही थी,साथ ही दूसरे कवियों के प्रति उनकी सम्मान की भावना भी स्पष्ट होती थी।
उस समय गणेशोत्सव के दरम्यान सार्वजनिक समितियां कवि सम्मेलन का आयोजन किया करती थीं।हमारे शहर में हर वर्ष अखिल भारतीय कवि सम्मेलन होता था तो अखिल भारतीय मुशायरा भी हर वर्ष होता था।मुशायरों में कैफ़ी आज़मी,डॉ.बशीर बद्र,शबनम सहित अनेक नामचीन शायरों को सुनने का मौका मिला जिनमें कई फिल्मी गीतकार भी रहे हैं।
हमारे शहर में भी अनेक शायर ख्याति प्राप्त रहे हैं जिनमें नजमी बिलासपुरी,डॉ.राज मलकापुरी,डॉ. मंजूर अली राही आदि हैं।इनमें राही जी अब भी उर्दू बज़्म की शान हुआ करते हैं।ये शेरो-शायरी,गज़ल, नज़्में ही लिखते थे, हिंदी की रचनाएं इन्होंने नहीं लिखीं।
कमलाकर जी का जन्म 7 अप्रैल 1941 को ग्वालियर में हुआ था जबकि वफ़ात 16 अगस्त 2016 को हुआ।उनका कर्मक्षेत्र बिलासपुर बना।यहां वे इंजीनियरिंग महाविद्यालय में शारीरिक शिक्षा के शिक्षक थे।चार दशक की साहित्यिक यात्रा में उनकी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हुईं।
1997 में उनका पहला खण्ड काव्य वीणा प्रकाशित हुआ। इसके बाद कालजयी,समर्थ राम,कहीं से भी पढ़ लो,कबीर से कमलाकर,नर,नारी,नारीश्वर खण्ड काव्य क्रमशः प्रकाशित हुए।भक्ति काव्य के रूप में उनकी पुस्तक “किसना मोहे तारो” है।
दो नाटक भी उन्होंने लिखा जिनमें आजादी का पहला दिन और बोलते खंडहर शामिल हैं।बाल साहित्य पर उनकी किताब काठ का घोड़ा,कागज की नाव,बाल कविता भाग एक और दो है।
वीणा खण्ड काव्य पर उन्हें मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल द्वारा पं.हरिहर निवास द्विवेदी सम्मान से 1998 में सम्मानित किया गया।यह सम्मान उन्हें तत्कालीन राज्यपाल भाई महावीर जी ने एक प्रतिष्ठापूर्ण समारोह में प्रदान किया।2007 में अखिल भारतीय साहित्य संगम उदयपुर(राजस्थान) में उन्हें प्रतिभा सम्मान मिला।
इसी प्रकार उनका नाटक काठ का घोड़ा बोधगया बिहार में प्रशंसित एवं सम्मानित हुआ।उनके सम्मान की एक लंबी सूची है।कमलाकर जी सहज,सरल इंसान थे।उनमें जरा भी अहंकार नहीं था। वे मुझे अपना स्नेह-प्रेम हमेशा प्रदान किया करते थे।
अनेक बार उन्होंने आईटीआई की कर्मशाला में गणेशोत्सव आयोजित कर काव्य सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें भारतेंदु साहित्य समिति और उसके सदस्य काव्य पाठ किये।उसमें मुझे भी काव्य पाठ का मौका मिला।
हिदायत अली कमलाकर जी की हिंदी साहित्य में अच्छी-खासी पकड़ थी। उनकी सभी किताबें हिंदी साहित्य पर ही केंद्रित हैं जबकि उर्दू साहित्य पर उनका लेखन मुझे देखने को नहीं मिला है।
वे अपने से छोटे रचनाकारों को बराबर प्रोत्साहित किया करते थे।बाद में उन्होंने लंबे बाल के साथ अपनी दाढ़ी भी बढ़ा ली जो आयुपर्यंत बढ़ी ही रही। आकाश- वाणी से उनकी अनेक रचनाएं एवं वार्ताएं पूर्व में प्रसारित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएं पत्र-पत्रकाओं में हमेशा प्रकाशित होती रहीं है।उन्होंने हिंदी साहित्य को जिया और जीवंत किया.
कोनी से राममंदिर की दूरी आठ-दस किलोमीटर से कम नहीं होगी पर वे प्रतिदिन शाम को मंदिर आ जाते थे।आधा-एक घण्टे बैठकर वापस होते। सायकल में आवागमन करते थे।उनके छह पुत्र एवं एक पुत्री सहित सारा परिवार यहां ही रह रहे हैं।
उनके बड़े पुत्र शाहिद अली जी कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जन संचार विश्वविद्यालय रायपुर में विभागाध्यक्ष मॉस कम्युनिकेशन सोशल वर्क हैं। उन्होंने ने मुझे उनकी फोटो और अन्य जानकारियां सुलभ कराई। उनका मैं ह्र्दयतल से आभारी हूं।
सौजन्य: श्री केशव शुक्ला जी,
वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार
बेहतरीन लेख बहुत अच्छा लगा
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