यहां एक दृष्टिकोण की जरूरत है जहां सभी सरकार, समाज और आध्यात्मिक नेता मिलकर काम करते हैं, छत्तीसगढ़ की नदीयों को बचाने के लिए समाज को आगे आना होगा, नदी को सम्मान देने की दिशा में कौन काम करेगा? नदियों को उसके जीवित रहने के लिए समाज का समर्थन चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता है, तो हम हमेशा के लिए खो सकते हैं। आशा, संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिकता का यह जीवित प्रतीक, जो पहले से ही उसकी मृत्यु पर है।हम काल्पनिक नए भारत की कल्पना करते हैं, नदी हम सभी की है, नदी भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रथाओं से जुड़ी है और उसके लोग, भले ही विश्वास, जाति, वर्ग, राजनीतिक संबद्धता या लिंग के हों लेकिन नदियां हमारी एकमात्र जीवित विरासत है। भारत के प्रतीक संत महावीर, बुद्ध, गुरु नानक, अशोक, अकबर, हर्ष, संत कबीर, संत तुलसीदास और कई और, सभी का नदियों से जुड़ाव था।
विज्ञान यह भी साबित करता है कि नदियों का पानी विशेष रूप से नदी के लिए अद्वितीय है:
नदियों के स्वच्छ प्राकृतिक पानी में सूक्ष्म जीवों को मारने तथा बेअसर करने की क्षमता है और यह बैक्टीरियोफेज के रूप में कार्य कर सकता है। नदी में घुलित ऑक्सीजन के उच्च स्तर को बनाए रखने की क्षमता है. रेडियोधर्मिता जो पॉलीफेग को मिटाती है, महानदी में पाई गई है. सूक्ष्म जीवों के कारण अतिरिक्त सेलुलर पॉलिमर पाए गए हैं जो सक्षम हैं जैविक प्रदूषकों को नष्ट करने में, पहले ये गुण महानदी के पानी में पाए जाते थे। दुर्भाग्य से, के कारण सीवेज की विषाक्तता और जहरीले रसायन और मुक्त प्रवाह में बाधा, ये गुण खो गए हैं. इतिहास हमें सूचित करता है कि जब कोई देश और उसके लोग अपनी विरासत और संस्कृति को नहीं सहेजते हैं, तो समय के साथ वह ख़ुद खो जाते हैं। सवाल यह है कि क्या हम इस राष्ट्रीय धरोहर को जाने देना चाहते हैं?नदियों को बचाने के हस्तक्षेप से वांछित परिणाम नहीं मिले हैं। नदी का अस्तित्व बहुत ही कम है.
हिस्सेदारी: नदी के कायाकल्प के लिए आम लोगों को कदम बढ़ाने और जिम्मेदारी लेने की जरूरत है.
नदी का कायाकल्प तभी होगा जब समाज के सभी वर्गों: राज-समाज- संत (सभी बाहों) शासन, समुदाय और आध्यात्मिक नेता) एक साथ काम करते हैं।यह नदियों की रक्षा के लिए है कि हमनें बोलती नदी के माध्यम से पैदल चलकर छत्तीसगढ़ के एक छोटी सी सकरी नदी को उसके उद्गम से विलीन स्थल तक पैदल चलकर पर किया, ध्यान आकर्षित करने और उचित कार्रवाई के लिए आम जन से मुलाकातें की जनमत बनाने का प्रयास किया और करते रहेंगे. इस प्रयास में भविष्य में एक स्वतंत्र परिषद व संगठन बनाने की भी आवश्यकता हैं जो भावपूर्वक नदियों के लिए सत्याग्रह करें, इसके जीवन रक्षा के लिए देश और दुनियाँ में जहां कहीं भी हो सामने आए और अपनी बात कह सकें. नदियों की ज़ुबान समझी जाने चाहिए, नदियां क्या बोलना चाहती हैं उसे समझने की आवश्यकता हैं. धर्म, जाती, समुदाय से ऊपर उठकर नदियों के लिए आवाज़ उठाएं.