हम जर्मनी में यहूदियों के साथ खड़े है,
हम कश्मीर में पंडितों के साथ खड़े है,
हम पाकिस्तान में अल्पसंख्यक शियाओं, सिखों, हिन्दू, पारसी, ईसाई, बौद्ध के साथ खड़े है,
हम चीन में उइगर के साथ खड़े है,
हम म्यांमार में रोहिंग्या के साथ खड़े है,
हम श्रीलंका में तमिलों के साथ खड़े है,
हम दिल्ली में सिखों के साथ खड़े है,
हम छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के साथ खड़े है,
हम गुजरात मे मुस्लिम के साथ खड़े है,
हम अमेरिका में ब्लैक लोगो के साथ खड़े है,
हम ईरान में पारसियों के साथ खड़े है,
हम इराक में कुर्दों के साथ खड़े है,
हम अफगनिस्तान में बौद्ध के साथ खड़े है,
हम सऊदी अरब में सियाओ के साथ खड़े है,
हम मिडिलईस्ट में फ़िलिस्तीन के साथ खड़े है,
हम बोसेनिया में मुस्लिमों के साथ है,
हम भारत मे दलितों के साथ खड़े है,
हम दुनिया मे सभी कमजोर कौम के साथ खड़े है, इंसानियत की यही असली पहचान है कि वो सदा मजलूमों और बेसहारा के पक्ष में रहता है, ये सब उसे बाकी के प्राणी जीव जंतु से उत्कृष्ट बनाती है। यही रास्ता महात्मा गांधी का था वो भी हमेशा कमजोरों के साथ खड़े रहते थे।
– अमीर हाशमी
रामायण में रावण के विरूद्ध श्री राम अल्पसंख्यक साधु संतों के साथ खड़े थे। महाभारत में कौरव सेना के विरुद्ध श्री कृष्ण अल्पसंख्यक पांडवों के साथ थे। स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजी सेना के विरुद्ध महात्मा गांधी भी बिहार में नील की खेती करने वाले दलित व कमजोर किसानों के साथ थे। हर जगह गांधी जी कमजोर व अल्पसंख्यक के साथ खड़े थे। इसे ही इंसानियत व साहस पुर्ण कदम माना गया है। इसीलिए राम जी को मर्यादा पुरूषोत्तम कहा जाता हैं और गांधी को रविन्द्रनाथ ठाकुर ने महात्मा कहा हैं.
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