एक ग़ज़ ज़मीन भी मेरे नाम नहीं लेकिन,
मेरा वजूद हमेशा के लिए यादगार हैं,
ये मेरी आख़िरी बात हैं.
मैं जिस समंदर में डूबना चाहता हूँ,
उसका पानी मीठा होना चाहिए,
उसका रंग ग़ुलाबी होना चाहिए,
वो ठंडा भी होना चाहिए,
मेरी हस्ती का अंजाम कब्र नहीं मज़ार होने की बात हैं,
ये मेरी आख़िरी बात हैं
दुनियाँ भर का तमाशा है, मैं ख़ुद तमाशा हूँ,
हर कोई सच ही बोलता है मगर,
राज़ की कोई तो बात है,
सुबह के आने पर भी सुबह ना होगी ये मौजूदा फ़रमान हैं,
रौशनी के उजले दिए अब तो तेरे बस रूख़ बदलने का इंतेज़ार हैं,
ये मेरी आख़िरी बात हैं
जिनकी कश्तियाँ जहाँ में तैरती हैं अजीब हैं,
पत्थर की नाव और कागज़ के सिपेसलार हैं,
दिन ढलता हो या हो सर्दी की सुबह,
मुझे रंगों से मुहब्बत हैं ये बात अंधेरों की समझ के पार हैं,
ये मेरी आख़िरी बात हैं.
(अब ये नज़्म हैं कि कविता हैं के खिचड़ी है नहीं पता, जो दिल में आया लिख दिए हम, हम मतलब मैं अमीर, एक आदमी)