In frame: Bastar Prince His Highness Shree Kamal Chandra Bhanjdeo, Bastar Dussehra is the unique cultural trait of Chhattisgarh. Celebrated by the local people of the state with sufficient vigor, the festival of Dussehra. During Dussera, the inhabitants of Bastar organizes special worship ceremonies at the Danteswari temple of Jagadalpur.
देशभर में दशहरे का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, हमारे देश में एक जगह ऐसी भी है जहां दशहरा पर्व 10 दिनों तक नहीं बल्कि 75 दिनों तक मनाया जाता है।

वह जगह है छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का जगदलपुर, यहां का दशहरा छत्तीसगढ़ या भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश के पर्यटक यहां दशहरा देखने आते हैं। बस्तर के दशहरे में पौराणिक, ऐतिहासिक, स्थानीय वनवासी परंपराओं और तंत्र साधना का मेल नजर आता है। दशहरे का मतलब यहां पर परंपरा, प्रकृति और मां दांतेश्वरी देवी की पूजा से है। 13वीं शताब्दी में बस्तर के राजा पुरुषोत्तम देव ने इस त्योहार की परंपरा शुरू की थी।

बस्तर दशहरा में रावण वध की परंपरा नहीं है, यहां बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी के नाम से दुनिया का सबसे बड़ा उत्सव आदिवासी मनाते हैं। इसमें नवरात्र में लकड़ी का विशाल रथ नगर परिक्रमा करता है। रथ के लिए लकड़ी ककागलुर से आती है। ग्रामसभा के लकड़ी देने से मना करने से गतिरोध की स्थिति बन गई है।

दशहरा की शुरुआत में लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा ककागलुर के ग्रामीण बैलगाड़ी में लादकर दंतेश्वरी मंदिर लाते हैं। इसे ठुरलू खोटला कहा जाता है। इसी लकड़ी से रथ निर्माण का काम शुरू होता है। इसके बाद दशहरा समिति वहां के जंगल से ढाई से तीन मीटर मोटाई वाले करीब 60-70 वृक्ष कटवाती है। मोटे तने वाले इन वृक्षों की आयु सौ साल तक होती है।
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