आज मैं उसी बस में बैठा गुज़र रहा था पवई से, जिसमें हम पहली बार मिले थे, 122 की फ़ास्ट, तुम्हारी वाली सीट पे एक पारसी लड़की बैठी थी, उसका इंटर्व्यू था शायद ऐरोली में कहीं, वरना तो पारसी साउथ से बाहर दिखते नहीं हैं वो भी लोकल में तो हरगिज़ नहीं. मैं एक पल के लिए ठहर गया उसे देखकर, वो बिल्कुल उसी तरह का स्कर्ट पहनी हुई थी जो तुमने पहना हुआ था हमारी पहली मुलाक़ात में,
मैं आज भी रास्ता भूल जाता हूँ इंडिया गेट से वापसी के दौरान, तो मुझे पता था पारसी लोगों से पूछने पर वो पूरे घर तक की बस का नंबर याद करवाने के बाद जाने देते हैं, इसलिए मैंने उससे बात करने के लिए वी.टी. का ही पता पूछ लिया, आज मेरा ऑडिशन था आराम नगर में, पहुँचना भी टाईम पर था मग़र तुम्हे तो पता हैं ना मैं जब बातें करता हूँ तो कितनी करता हूँ, मेरे जैसे नॉर्थ इंडियन से बॉम्बे में कोई अनजान बात करले तो लगता हैं जैसे शाहजनाबाद की क़ासिम गली पहुँच गया हूँ, जहां चाय पीते मेरे हर रोज़ के चार दोस्त बन जाते थे, मैं पूछता चला गया वो पूरे रास्ते मुझे सही पता याद कराते चली गई.
पहली मुलाक़ात हमारी इतनी मुख़्तसर (छोटी सी) थी, कि तुमने देखकर ही शायद जी भर लिया था मुझे, शायद वो पीछे की सीट पर बैठा आदमी तुम्हारा रिश्तेदार था, इसलिए तुमने बात नहीं कि थी ना मैं इतनी हिम्मत जुटा पाया था, लेकिन इस बार मैंने वो गलती नहीं कि इस बार हिम्मत करके मैंने नंबर मांग लिया आधे रास्ते में, मगर उसे मेसेज करने से पहले तुम याद आ रहीं हो तो उसे क्यूँ मेसेज करूं मैं, तुम्हें हमारी पहली और आखिरी उस मुलाकात में अपना नंबर देकर जाना चाहिए था.
मैं तुम्हें आज भी याद करता हूँ, वो फ़ास्ट लोकल मेरे ज़हन में स्लो मोशन में चलती हैं, उस दिन जो बस का ड्राइवर था उसका नाम अतुल था जो कंडक्टर को मंजू-मंजू कहकर बात कर रहा था, उसने अंधेरी के नज़दीक कट लगाते हुए ऑटो वाले को बचाया था याद हैं, तब जबकि सारे लोग सामने की तरफ उस ऑटो वाले को देख रहे थे, बस तुम और मैं एक दूसरे को.
– अमीर हाशमी की कलम से
सुन्दर
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ati sundar kahani
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