इस नाअह्ल दुनिया के ख़ुदाओं और पैग़म्बरों जाओ, मैं तुम्हें अपना ख़ून माफ़ करता हूँ कि मैं जानता हूँ तुम बहुत बेबस और मा’ज़ूर हो कि तुम पर क़त्ल का इल्ज़ाम लगाना इंसानियत के हक़ में नहीं और क़ुदरत की निगाह में भी नाज़ेबा है। तुम्हें मक़तूल की दुआ है कि जब भी प्यास लगे, इंसान का लहू ही मिले तुमको, कभी पानी नसीब न हो।