अमीर हाशमी कहते है कि नदियां केवल पानी का स्त्रोत नहीं बल्कि हमारी सभ्यताओं का हिस्सा हैं, मैंने अपनी यात्रा के दौरान रास्ते में अपनी आंखों से नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी पर होते हुए डेवलपमेंट को देखा, यह प्रोजेक्ट अपनी पूरी रफ्तार से कार्य कर रहा है, जो सराहनीय हैं, मुझसे अलग-अलग श्रेत्र के विधायक भी आकर मिलें और अपनी विधानसभा श्रेत्रों में नरवा और गौठान के डेवलोपमेन्ट की तस्वीरें भी साझा की है, वहीं अप्रैल से ही गौठानों को भेजें जाने वाले चारा बीजों की तैयारी भी नर्सरी में की जा रही है जिसे जून माह तक पंचायतों में भेज दिया जाएगा, वहीं मनरेगा मजदूरों द्वारा जगह-जगह पर नालों के गाज निकासी का कार्य देखने को मिलता हैं, प्रथम दृष्टी में यह नारा अमल में आता हुआ दिखाई तो देता है मगर नदियों के पुनः जीवन के लिए इस प्रोजेक्ट में काफी कमियां है जिसका दूर होना आवश्यक हैं, हमारी रिसर्च टीम इन कमियों की ड्राफ्टिंग में लगी हुई है जिसे पूर्ण करने के बाद मैं खुद मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें अपनी तरफ से नादियों के पुनर्जीवन के लिए अपने 10 सुझाव प्रस्तुत करूँगा।
जनसमर्थन के आभाव में सद्गुरू का “रैली फॉर रिवर” प्रोजेक्ट बेअसर निकला
नदियों की पुनर्जीवन में उनसे जुड़े हुए ग्रामों का बहुत महत्व है और हर एक गाँव की अलग ज़रूरत हैं एक आइडिया सब पर थोपा नहीं जा सकता है, जिस प्रकार जग्गी वासुदेव सद्गुरू ने गलती की थी, रैली फॉर रिवर का आइडिया भी लेकर आए, जागरूकता के लिए अच्छा काम किया मगर एक ही आइडिया पूरे देश पर थोपना उनका गलत निर्णय था, छत्तीसगढ़ की पूर्व सरकार ने सद्गुरु जी के साथ ओ.एम.यू. तो साईन कर लिया मगर ज़मीनी हकीकत क्या है यह जानने का प्रयास ही नहीं किया, उस ओ.एम.यू. के माध्यम से कितने पैसे खर्च हुए और नदियों पर क्या प्रभाव पड़ा इसका भी आज तक किसी को कोई प्रमाण नहीं मिला हैं। ऐसे निरर्थक आईडिया पर अमल करने से पहले सरकारों को एक बार ज़मीनी हकीकत जांच लेनी चाहिये, नदियों को पुनर्जीवित केवल सरकार द्वारा नहीं किया जा सकता है, इसके लिए जनभागीदारी की आवश्यकता पड़ती है, मैं राज्य की और देश की अन्य सामाजिक संगठनों को भी इस कार्य के लिए एकजुट करने का प्रयास करूंगा. एन.जी.ओ. महासंघ के माध्यम से अभी हमारे साथ राज्य भर के करीब 270 एन.जी.ओ. जुड़े हुए हैं। हाशमी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ वासियों में इक्षाशक्ति की कोई कमी नहीं है, केवल पर्यावरण की रक्षा और उसकी सुरक्षा की चिंगारी जलने की देर हैं, धान का कटोरा फिर दुनियाँ भर एक बार फिर अपनी पहचान बनाने में कामियाब होगा।