फ़िल्ममेकर अमीर हाशमी ने पर्यावरण को लेकर नई पहल करते हुये छत्तीसगढ़ की सकरी नदी पर 90 कि.मी. पैदल चलते हुये एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाई हैं। सिविल लाईन स्थित वृंदावन हॉल में आज मीर फाउन्डेशन के बैनर तले बन रही इस सामाजिक चेतना वाली फिल्म को लेकर संगोष्ठी रखी गई, इस फ़िल्म को अमीर पोस्ट-प्रोडक्शन पूर्ण होने के बाद दुनियां भर के 50 से अधिक देशों के 200 से अधिक फ़िल्म फेस्टिवल्स में भेजने की तैयारी में हैं, जिसकी कुछ हाईलाइट्स प्रदर्शित की गई, इस फ़िल्म का मक़सद दुनियां भर के बुद्धिजीवियों, पर्यावरण प्रेमियों और संगठनों का ध्यानाकर्षण छत्तीसगढ़ की तरफ लाना हैं, ताकि विश्व के सर्वश्रेष्ठ विचारों का आदान-प्रादान हमारे राज्य की नदियों के पुनर्जीवन हेतु किया जा सकें। अमीर हाशमी को हाल ही में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरुस्कार द्वारा सम्मानित किया जा चुका हैं, छत्तीसगढ़ में रहने वाले फ़िल्म जगत वे एकलौते कलाकार हैं जिन्हें किसी फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हैं।
मीर फाउन्डेशन की रिसर्च टीम द्वारा किया गया सर्वेक्षण नदियों से लगे गाँव का
बोलती नदी पर हाशमी कहते हैं कि मैं फिल्मों की आपाधापी से निकलकर जब भी समय बचता है उस पूरे समय को अपने एन.जी.ओ. मीर फाउन्डेशन द्वारा समाज और अपने धान के कटोरे (छत्तीसगढ़) को देता हूँ, बोलती नदी की शुरूआत 2017 में मैंने पहले अर्बन मॉडल (शहरी क्षेत्र) से की थी, जिसमें हमनें राज्य के 16 से अधिक ज़िलों के यूनिवर्सिटी, कॉलेजों और स्कूलों में वृहद कार्यशालाएं की और जनजागरूकता के साथ युवाओं का समर्थन और आइडिया शेयरिंग प्रोग्राम से अलग-अलग विचार और आइडिया शेयर किया। हमनें दो सालों में वृहद स्तर पर कार्यशालाओं के माध्यम से दो लाख से अधिक युवाओं से संवाद किया। अब बोलती नदी के रूरल मॉडल (ग्रामीण क्षेत्रों) में काम काम इनिशिएट किया हैं जिसमें नदियों से सटे हुए ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियान चलाकर पहले पर्यावरण को हो रही हानि से सचेत करेंगे और आने वाले समय में जनभागीदारी और ज़रूरत पड़ी और सरकार सामने आने को तैयार हुई तो साथ मिलकर नदियों के पुनः जीवन पर श्रमदान द्वारा नदियों का उत्थान करेंगे. इस अभियान में मीर फाउन्डेशन की टीम और सेल्फ मोटिवेटेड वॉलेंटियर्स का बहुत योगदान रहा है, मीर फाउन्डेशन के सचिव हिमांशु चंद्रवंशी के नेतृत्व में हमारी रिसर्च टीम द्वारा नदी से लगे हुए लगभग सभी गाँव का सर्वेक्षण कराया गया है, जिससे प्रत्येक गांव में पानी को लेकर अपनी अलग-अलग तरह की समस्याओं का ब्यौरा बनाया गया हैं। इन सैम्पल के आधार पर हम बेहतर तरीके से जान पाए हैं कि प्रत्येक गांव में क्या-क्या आवश्यकताएं है।