जिस तरह भारतीय मुसलमान दिवाली में फटाके तो फोड़ता है और होली में गुलाल भी खेलता है मगर लक्ष्मी पूजा या होलिका पूजन नहीं करता हैं। वैसे ही भारतीय हिन्दू भी ईद में शीरखुरमा-सेवईयां और बकरीद में जो नॉनवेज खाते हैं सो साथ मिलकर बिरयानी खाते हैं मगर ईद की सुबह नामज़ नहीं पढते हैं।
यह परस्पर प्रेमभाव हैं और इज़्ज़त है इस दूसरे की आस्था के प्रति, कि एक-दूसरे की आस्था का पूरा सम्मान भी करते हैं, हिन्दू-मुस्लिम, गंगा-जमुनी तहजीब के प्रेम भाव से त्योहार भी साथ मनाते हैं और अपने-अपने धर्म का पालन भी करते है।
इज़्ज़त और पालन करना अलग अलग है, “मैं आपके धर्म की इज़्ज़त करता हूँ, आप मेरे धर्म की इज़्ज़त करते हैं। मैं आपके धर्म का पालन नहीं करता हूँ, आप मेरे धर्म का पालन नहीं करते हैं। फिर भी एक दूसरे के धर्म का पालन किये बगैर हम एक दूसरे की आस्था का सम्मान करते हैं।”
किसी भी धर्म की आस्था रखने वअले इंसान का यह कहना कि “मेरा धर्म महान हैं” बहुत अच्छा विचार हैं, लेकिन “मेरा ही धर्म महान हैं” ये कहना कट्टरवादी सोच का परिचायक दिमाग़ी दिवालियापन हैं।
– अमीर हाशमी
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Very true & deep thought….
जो हम दूसरों को देते है वही लौट कर हमारे पास आता है।
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