देश का हर युवा चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, वह *”मरियादा पुरूषोत्तम”* इस लफ़्ज़ के मायने अच्छे से जानता हैं और अपने मन से अपनाता हैं।
हिन्दू और मुसलमान को अलग-अलग चश्में से देखने वाले राजनीतिक दल से निकलने वाले जहर से आप कितने पीड़ित हैं मैं समझा जा सकता हैं, लेकिन आप देश के मुसलमानों से श्री राम के आचरण को अलग नहीं कर सकेंगे, मुस्लिम श्री राम की पूजा नहीं करते है क्योंकि उनका ख़ुदा केवल एक है जिसका नाम अल्लाह हैं, मुसलमानों की आस्था यह हैं कि खुदा सिर्फ एक है और ईबादत भी केवल एक निराकार अल्लाह कि की जाती हैं यहां तक मां-बाप की भी नहीं, इसलिए वह वंदे मातरम (माँ की वंदना/माँ की पूजा) जैसे शब्द मुसलमान इस्तेमाल नहीं करते हैं, इस जीवन में माँ-बाप सबकुछ है, उन्होंने जन्म दिया हैं, फिर भी स्पष्टतः यह हैं कि कोई और खुदा नहीं है।
कारगिल युद्ध में में 97 मुसलामन जवानों ने अपने प्राणों की आहूती भारत माँ को दी, मुसलमान देश के लिए खुशी से मर भी सकते हैं, देश प्रेम में ओत-प्रोत यह कौम भारत माँ के लिए कुछ भी कर सकती है लेकिन पूजा नहीं कर सकते हैं। यह प्रेम परामर्थ शौर्य बलिदान के प्रतीक भी हैं और अपनी आस्था में विलीन दोनों को अलग-अलग तरह से स्पष्ट निभाना भी जानते है।
श्री राम का आचरण, उनका साहस, साहित्य, प्रेम भाव, उनका न्याय विधान मुसलमानों के दिलों में बसता हैं इसमें भी कोई संदेह नहीं रखना चाहिए। वो भारत के महान राजाओं में से एक थे, जिनका न्याय विधान देखकर लोगों ने उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहां, वह मुसलमानों के लिए भी एक आइडियल व्यक्तित्व हैं। जिसपर हर भारतीय को गर्व है कि वह श्री राम के ऐसे मुल्क़ में पैदा हुआ है।
“इज़्ज़त और इबादत में फर्क है”
जिस तरह भारतीय मुसलमान दिवाली में फटाके तो फोड़ता है और होली में गुलाल भी खेलता है मगर लक्ष्मी पूजा या होलिका पूजन नहीं करता हैं। वैसे ही आप भी ईद में शीरखुरमा-सेवईयां और बकरीद में जो नॉनवेज खा सकते है तो बिरयानी खाते हैं साथ मिलकर मगर ईद की सुबह नामज़ नहीं पढते हैं।
यह परस्पर प्रेमभाव हैं और इज़्ज़त है इस दूसरे की आस्था के प्रति, कि इस दूसरे की आस्था का पूरा सम्मान भी करते हैं, प्रेम से त्योहार भी साथ मनाते हैं और अपने-अपने धर्म का पालन भी करते है। तो इज़्ज़त और पालन करना अलग अलग है। मैं आपके धर्म की इज़्ज़त करता हूँ, आप मेरे धर्म की इज़्ज़त करते हैं। मैं आपके धर्म का पालन नहीं करता हूँ, आप मेरे धर्म का पालन नहीं करते हैं। फिर भी एक दूसरे के धर्म का पालन किये बगैर हम एक दूसरे की आस्था का सम्मान करते हैं।
आज की ज़हर भरी यह परिकल्पना किसने आपको बताई है कि श्री राम का नाम केवल हिन्दू ले सकते हैं। उनके आचरण की चर्चा केवल हिंदुओं के कॉपीराइट में हैं या सनातन धर्म की किसी किताब में लिखा हैं कि श्री राम केवल हिन्दू कहलाये जाने व्यक्तियों के ही हैं और वहीं उनका नाम ले सकते हैं।
राजनीति करने के लिए लोग श्री राम का नाम लेते हैं, जिससे देश एक कट्टरवाद की तरफ बढ़ रहा हैं, उन्हें तो रोक नहीं पाते हैं।
देश के मुसलमानों से राम को अलग करने का विचार अपने दिलों दिमाग से निकाल दीजिये, राम के आचरण को, न्यायविधान और सत्य की विचारधारा को अपनाइये, उनके नाम पर बनी भ्रष्ट पार्टियों और नेताओं की विचारधारा को नहीं। जिस तरह 50 से अधिक देश आज अपने-अपने धर्मों की कट्टरवादी सोच के साथ आगे बड़े और आज ग़ुलामी, गरीबी, भुखमरी और आतंक की चपेट में हैं।
श्री राम आज अगर इन भ्रष्ट लोगों के सामने आ जाये तो यह तथाकथित रामभक्त श्री राम को ही पाकिस्तान भेजने की बात कह देंगे। क्योंकि श्री के पवित्र विचार इन पापियों के विचार से कहीं भी मेल नहीं खा सकते। राम भारतीय संस्कृति का, हिंदुओं का और यहां रहने वाले मुसलमानों का अभिन्न अंग हैं।
– अमीर हाशमी