एक समय था जब घर के सामने गुज़रता कोई भिक्षु प्रेम भरे स्वर में “राम का नाम” लेता था, अपनी मस्ती अपने प्रेम अनुराग से भरा हुआ वो स्वर जब कानों में पड़ता था तो घर से निकलकर उस फ़कीर को गले से लगाने को दिल करता था, आज यह विडंबना हैं कि राम का नाम लेकर गला दबाया जा रहा हैं, “जय श्री राम” नहीं बोलने पर जान से मार दिया जा रहा हैं।
उस फ़कीर का राम मुझे अज़ान वाले “अल्लाह हूँ अकबर” की तराह मीठा लगता था, ये वाला “जय श्री राम” मुझे तालिबानियों वाले “अल्लाह हूँ अकबर” की याद दिलाता हैं।
✍️🙁👍
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