एक पर्त सी चढ़ गयी है धूल की,
तेरे मेरे रिश्ते के आईने में अब,
वो जो प्यार था मेरा वही है अब भी,
तू कभी शीशा साफ करके देख भी
मैं मिलूंगा तुझको वहीं मोड़ पर,
तू ज़रा मुड़कर कभी देख सही,
वो जो रास्ते थे कभी हमारे हमनावां,
मुझको रोक पूछते है कहाँ है तेरा हमनशीं,