रात गुजरी है आज कि फिर उसी तराह,
जैसे तेरी बाहों में गुज़रती थी कभी मेरी,
वो लम्हा जो तुम छोड़ आये हो मेरे साथ,
वो अधूरा रह गया था शायद मुझसे कही,
तेरी बेबसी कब तेरी दूरियों का सबब हो गयीं,
मेरी आशिक़ी भी फिर धुंए का सबब हो गयी.
करना इन्तज़ार कहकर तूने कही घर कर लिया,
तेरा ये बेघर दिल-ए-अमीर अब बेघर ही रह गया.
#अमीरहाशमी की कलम से…