अमीर हाशमी की कलम से…
कैसा है शमशान देख ले, चल मेरा खलिहान देख ले…
कैसा है शमशान देख ले, चल मेरा खलिहान देख ले.
अगर देखना है मुर्दा तो, चल कर एक किसान देख ले.
सर्वनाश का सर्वे कर-कर, पटवारी धनवान देख ले.
सिर्फ़ अँगूठा लिया सेठ ने, कितना मेहरबान देख ले.
मरहम में रख नमक लगाते, सरकारी अहसान देख ले.
देहरी पर मैसी फ़र्गुसन, अंदर बियावान देख ले.
मानसून तक मनमाना है, बस बेबस मुस्कान देख ले.
कुर्की की डिक्री पर अंकित, गिरता हुआ मकान देख ले.
कल पेशी है तहसीलों में, कोदो कुटकी धान देख ले.
सम्मान मिला है कचहरी से, अधिग्रहण फ़रमान देख ले.
तस्वीरों के पार झाँक कर, गाँवों का उत्थान देख ले.
आ इंडिया से बाहर आ, आकर हिंदुस्तान देख ले.
(संस्करण: मैं किसान बोल रहा हूँ)
यह भी पढ़े, “मैं किसान बोल रहा हूँ”
https://wp.me/P4pbmp-Gx
bahut hi sarahniye rachna…..ek kavita men lagbhag aapne kisanon ki durdasha ko bhalibhaati byakt kiya hai……..umda lekhan.
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शुक्रिया…!
(संस्करण: मैं किसान बोल रहा हूँ)
यह भी पढ़े, “मैं किसान बोल रहा हूँ”
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Vahutkhub likha hai janab
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लाजवाब
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